"लोग किसी को भी अपनी संपत्ति पर कब्ज़ा नहीं करने देते, मगर वे दूसरों को अपनी जीवन पर कब्ज़ा कर लेने देते हैं. लोग अक्सर फिजूल-खर्ची करने से बचते हैं, पर समय बर्बाद करने में वे तनिक किफ़ायत नहीं करते. सोचो ज़रा कितना समय आपका साहूकार के पास निकल गया, कितना किसी माशूका के साथ, कितना किसी ग्राहक के साथ, कितना अपनी पत्नी से झगड़ने में. आपने उतना जीवन जिया नहीं है, जितना आप गिन रहे थे. आखिर कब ऐसा हुआ कि आपके पास एक निश्चित लक्ष्य था, कब ऐसा हुआ जब आप अपने लिए जी रहे थे, जब आपके चेहरे के भाव बनावटी नहीं थे, जब आपका मन बेफिक्र था, इस इतनी लम्बी ज़िन्दगी में आपने क्या हासिल किया, कितनों ने आपसे आपकी ज़िंदगी लूट ली, कितना समय बर्बाद हो गया फालतू के रोने-धोने में, मूर्खता भरे उल्लास में, लालची कामनाओं में, समाज के प्रलोभनों में, कितना कम समय बचा आपके पास अपने स्वयं के लिए; आप अपने समय से पहले मर रहे हैं!” आप ऐसे जीते हैं मानो आप सदा जीवित रहने वाले हैं. यह दिन जो आप किसी इंसान या चीज़ पर खर्च कर रहे हैं शायद आपका आख़िरी हो. आपके पास नश्वरों की सारी चिंताएं हैं और अमरों की सारी लालसाएं. कितना देर है आखिर जीवन जीने की शुरुआत तब करना, जब यह खत्म होने को हो! अपनी नश्वरता का कैसा मूर्खता भरा भुल्लकड़पन है कि हम जीवन की उम्दा योजनाओं को पचासवें और साठवें साल के लिए स्थगित कर देते हैं, और सोचते हैं कि जीवन उस पड़ाव पर शुरू करेंगे जहाँ बहुत ही कम लोग पहुँचे हैं!"
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