हम अपन खंड काव्य "गउवाँ घरूवा" क माध्यम सँ मिथिलाक समाज मे व्याप्त कुप्रथा पर अपन नज़रिया रख' जा रहल छी। जँ समाज मे हमर प्रयास सँ किछु नीक परिवर्तन भ' सकए छैक, त प्रयास जरूर करक चाही। सएह प्रयास क' रहल छी।
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