राज्य के सात अंग हैं - राजा, मंत्री, मित्र, कोष, देश, दुर्ग और सेना। जो इन सात अंगों के विपरीत आचरण करे वह दण्डनीय है, फिर चाहे वो मित्र हो या गुरु या बन्धु। इस विषय में प्राचीन काल में राजा मरुत्त का यह श्लोक कहा जाता है,
गुरोरप्यवलिप्तस्य कार्याकार्यमजानतः।
उत्पथप्रतिपन्नस्य दण्डो भवति शाश्वतः।।
अर्थात् घमंड में भरकर कर्तव्य और अकर्तव्य का ज्ञान न रखने वाला तथा कुमार्ग पर चलने वाला मनुष्य यदि अपना गुरु भी हो तो उसे दण्ड देने के सनातन विधान है।
जिस प्रकार राजा सगर ने प्रजा के हित के लिये अपने ज्येष्ठ पुत्र असमंज का भी त्याग कर दिया था। इस प्रकरण का विवरण आप हमारी गंगावतरण कथा में देख सकते हैं। Learn more about your ad choices. Visit megaphone.fm/adchoices
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