एक आदर्श राजा को समस्त व्यसनों का परित्याग कर देना चाहिये और उनके ऊपर आसक्ति नहीं रखनी चाहिये और उनसे उदासीन रहना चाहिये और सबके साथ द्वेषपूर्वक व्यवहार नहीं करना चाहिये क्योंकि,
लोकस्य व्यसनी नित्यं परिभूतो भवत्युत।
उद्वेजयति लोकं च योऽतिद्वेषी महीपतिः।।
व्यसनों में आसक्त हुआ राजा सदा सभी लोगों के लिये अनादर का पात्र होता है और जो राजा सभी के प्रति द्वेष रखता है, वह सभी लोगों को व्याकुल कर देता है। Learn more about your ad choices. Visit megaphone.fm/adchoices
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