विशेषज्ञों ने कहा, "हुज़ूर वह हाथ की पकड़ में नहीं आता। वह स्थूल नहीं, सूक्ष्म है, अगोचर है। पर वह सर्वत्र व्याप्त है। उसे देखा नहीं जा सकता, अनुभव किया जा सकता है।"
राजा सोच में पड़ गए। बोले, "विशेषज्ञो, तुम कहते हो वह सूक्ष्म है, अगोचर है और सर्वव्यापी है। ये गुण तो ईश्वर के हैं। तो क्या भ्रष्टाचार ईश्वर है?"
विशेषज्ञों ने कहा, "हाँ, महाराज, भ्रष्टाचार अब ईश्वर हो गया है।"
-सदाचार का तावीज़, हरिशंकर परसाई
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