श्री राम नवमी - (हरिगीतिका छंद)श्री राम नवमी पर्व पावन, राम मंदिर में मना।संसार पूरा राममय है, राम से सब कुछ बना॥संतों महंतों की हुई है, सत्य सार्थक साधना।स्त्री-पुरुष बच्चे-बड़े सब, मिल करें आराधना॥नीरज नयन कोदंड कर शर, सूर्य का टीका लगा।
समापन है शिशिर का अब, मधुर मधुमास आया है।सभी आनंद में डूबे, अपरिमित हर्ष छाया है॥सुनहरे सूत को लेकर, बुना किरणों ने जो कम्बल।ठिठुरते चाँद तारों को, दिवाकर ने उढ़ाया है॥......समर्पित काव्य चरणों में, बनाई छंद की माला।नमन है वागदेवी को, सुम
बड़ा टूट कर दिल लगाया है हमने जुदाई को हमदम बनाया है हमने तेरा अक्स आँखों में हमने छिपाया तभी तो न आँसू भी हमने बहाएतेरा नूर दिल में अभी तक है रोशन 'अक़ीदत से तुझको इबादत बनाकरलबों पर ग़ज़ल सा सजाया है हमने.. बड़ा टूट कर दिल लगाया है हम
मेरी यह कविता "प्रतिशोध" पुलवामा के वीर बलिदानियों और भारतीय वायु सेना के पराक्रमी योद्धाओं को समर्पित हैचलो फिर याद करते हैं कहानी उन जवानों की।बने आँसू के दरिया जो, लहू के उन निशानों की॥......नमन चालीस वीरों को, यही संकल्प अपना है।बचे
बड़ी ख़ूबसूरत शिकायत है तुझको कि ख़्वाबों में अक्सर बुलाया है हम ने बड़ी आरज़ू थी हमें वस्ल की परजुदाई को हमदम बनाया है हमने तेरा अक्स आँखों में हमने छिपाया तभी तो न आँसू भी हमने बहाएतेरा नूर दिल में अभी तक है रोशन 'अक़ीदत से तुझको इबादत
किताबें छोड़ फोनों को, नया रहबर बनाया है।तिलिस्मी जाल में फँस कर सभी कुछ तो भुलाया है। उसी के साथ गुजरे दिन, उसी के साथ सोना है। समंदर वर्चुअल चाहे, असल जीवन डुबोना है।ट्विटर टिकटौक गूगल हों, या फिर हो फेसबुक टिंडर।हैं उपयोगी सभी लेकिन, अगर
तुम को देखा तो ये ख़याल आया।प्यार पाकर तेरा है रब पाया।झील जैसी तेरी ये आँखें हैं।रात-रानी सी महकी साँसें हैं।झाँकती हो हटा के जब चिलमन,जाम जैसे ज़रा सा छलकाया।तुम को देखा ……देखने दे मुझे नज़र भर के।जी रहा हूँ अभी मैं मर मर के।इस कड़ी ध
एक किताब सा मैं जिसमें तू कविता सी समाई है,कुछ ऐसे ज्यूँ जिस्म में रुह रहा करती है। मेरी जीस्त के पन्ने पन्ने में तेरी ही रानाई है,कुछ ऐसे ज्यूँ रगों में ख़ून की धारा बहा करती है।एक मर्तबा पहले भी तूने थी ये किताब सजाई,लिखकर अपनी उल्फत की
तुम अकेले में अगर हो मुस्कुराते इश्क़ है। महफ़िलों में भी अकेले गुनगुनाते इश्क़ है।जब नज़र से दूर हो वो चैन दिल को ना मिले, सामने जब वो पड़े नजरें चुराते इश्क़ है। बेखबर तो है नहीं वो जानती हर बात है, हाल कहते होंठ फिर भी थरथराते इश्क़ है।ख़्वाब
बड़ा पावन है दिन आया हरे कृष्णा हरे कृष्णा। ख़ुशी भी साथ में लाया हरे कृष्णा हरे कृष्णा। मदन मोहन मुरारी की छवी लगती मुझे प्यारी,तभी तो झूम कर गाया हरे कृष्णा हरे कृष्णा। नहीं असली जगत में कुछ वही बस एक सच्चा है, सभी कुछ कृष्ण की माया हरे
बड़ा पावन है दिन आया हरे कृष्णा हरे कृष्णा। ख़ुशी भी साथ में लाया हरे कृष्णा हरे कृष्णा। मदन मोहन मुरारी की छवी लगती मुझे प्यारी,तभी तो झूम कर गाया हरे कृष्णा हरे कृष्णा। नहीं असली जगत में कुछ वही बस एक सच्चा है, सभी कुछ कृष्ण की माया हरे क
ये आज़ादी मिले हमको हुए हैं साल पचहत्तर। बड़ा अच्छा ये अवसर है जरा सोचें सभी मिलकर। सही है क्या गलत है क्या मुनासिब क्या है वाजिब क्या। आज़ादी का सही मतलब चलो समझें ज़रा बेहतर। Full Poem is available for listeningYou may write to me at Hindi
न सुकून है न ही चैन है; न ही नींद है न आराम है।मेरी सुब्ह भी है थकी हुई; मेरी कसमसाती सी शाम है।न ही मंज़िलें हैं निगाह में; न मक़ाम पड़ते हैं राह में,ये कदम तो मेरे ही बढ़ रहे; कहीं और मेरी लगाम है।कि बड़ी बुरी है वो नौकरी; जो ख़ुदी को ख़
कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया बात निकली तो हर इक बात पे रोना आयासाहिर उस दौर के शायर थे जब शायरी ग़म-ए-जानाँ तक न सिमट ग़म-ए-दौराँ की बात करने लगी थी। इस ग़ज़ल का मतला भी ऐसा ही है जो न सिर्फ खुद के गम पर हालात के गम का ज़किर भी करता है। आ
तू आग थी मैं आब था न तू ग़लत न मैं ग़लत।तू ज़िन्दगी मैं ख़्वाब था न तू ग़लत न मैं ग़लत।उधर भी आग थी लगी इधर भी जोश था चढ़ा,नया नया शबाब था न तू ग़लत न मैं ग़लत।जो सुर्ख़ प्यार का निशाँ तिरी निगाह में रोज था, मिरे लिये गुलाब था न तू ग़लत न म
ये जिंदगी का मोड़ वो, कि बस समय है प्यार का। सवाल ना जवाब ना, न वक़्त इंतिज़ार का। क्यों छोड़ कर चले गए, ये आज तक नहीं पता। मिली मुझे बड़ी सजा, मेरी भला थी क्या ख़ता।कि आज भी जिगर में है, वो अक्स मेरे यार का।ये जिंदगी का मोड़ वो, कि बस समय है
सब कहते हैं हम अब स्वतंत्र हैंपर सच कहूँ तो लगता नहींनिज भाषा का तिरस्कार देखता हूँस्वदेशी पोशाकों को होटल, क्लब सेनिष्काषित होते देखता हूँ सर्वोच्च न्यायालय में अंग्रेजी मेंमी लार्ड को टाई न पहनने के ऊपरफटकार लगाते देखता हूँFull Poem
आओ बच्चों आज तुमको, एक पाठ नया पढ़ाता हूँ। प्रकृति हमको क्या सिखलाती, ये तुमको बतलाता हूँ। Full Poem is available for listeningYou may write to me at [email protected] Send in a voice message: https://podcasters.spot
कलम की कोख से जन्मी, मेरे मन की तू दुहिता है।बड़ी निर्मल बड़ी निश्छल, बड़ी चंचल सी सरिता है॥मेरे मन की व्यथा समझे, अकेलेपन की साथी है। मेरा अस्तित्व है तुझसे, नहीं केवल तू कविता है॥Full Poem is available for listeningYou may write to me at H
नहीं घबरा के तुम हटना ये मंज़िल मिल ही जाएगी।डटे रहना निरंतर तुम सफलता हाथ आएगी।परीक्षाएं बहुत होती हैं दृढ़ निश्चय परखने को,लगन सच्ची लगी तुमको तो मेहनत रंग लाएगी।......अगर हँसता ज़माना है तो चिंता तुम नहीं करना,अभी हँसती है जो दुनिया वही
कड़ी मेहनत बड़ी मुद्दत लगे पैसा कमाने में।नहीं लगता ज़रा सा वक़्त पैसे को गँवाने में।बड़ा आसान है कहना कि पैसा ही नहीं सब कुछ,बिना पैसे नहीं मिलता यहाँ कुछ भी ज़माने में।------बड़ी ताकत है पैसे में सभी पर ये पड़े भारी,अदालत में चले पैसा यही चलता
आज सुनाता कथा पुरानी, जब सोने की चिड़िया भारत था।सुख समृद्धि से सज्जित, स्वर्ण-भूमि में सबका स्वागत था।अमरावती से सुन्दर नगरी, जहाँ महाकाल का धाम था।समस्त विश्व का केंद्र थी, उज्जयिनी जिसका नाम था।इंद्र से भी वैभवशाली, चन्द्रगुप्त विक्रमादित
ग़ज़ल - घर में सजते चाँद सितारे, बस क़िस्से और कहानी मेंघर में सजते चाँद सितारे, बस क़िस्से और कहानी में।सोने चाँदी के गुब्बारे, बस क़िस्से और कहानी में।रोज़ बिखरते ख़्वाब यहाँ पर, टूटे दिल भी हमने देखे,सच होते हैं सपने सारे, बस क़िस्से और कहान
एक ग़ज़ल लिखी है चन्दा पर,छत पर आके पढ़ लेना।है तेरी याद में गाया नगमा,जब हवा बहे तो सुन लेना।Full Poem is available in video & audio format.You can write to me at [email protected] Send in a voice message: https://podcaste
बड़ी पुत्री है संस्कृत की सरल भाषा तथा बोली।निरंतर सीखती रहती सभी से बन के हमजोली॥अनेकों रूप लेकर भी बड़ी मीठी है अलबेली।भले अवधी या ब्रजभाषा खड़ी बोली या बुन्देली॥ये जयशंकर महादेवी निराला जी की कविता है।मधुर मोहक सरस सुन्दर चपल चंचल सी सरित