एक बार गणेश जी सत्यलोक से विचरण करते हुए चन्द्र लोक में जा पहुचें। वहाँ रुपशाली चन्द्रमा ने गणेशजी के ऐसे हास्य -योग्य रूप को देखा जिसमे उनकी लम्बी सूंड,सूप के समान कान लम्बे दन्त ,बड़ी तोंद और चूहे के वाहन पर आसीन है। उस चूहे पर से गणेश जी धड़ाम से गिर पड़े। जब गणेश जी गिरे तो उनके रूप को देखकर अभिमानवश चन्द्रमा को हँसी आ गई। चन्द्रमा के हँसने से गणेशजी कुपित हो गए और उन्होंने चंद्रमा को शाप दिया कि आज से शुक्ल चतुर्थी के दिन जो व्यक्ति भूल से भी तुम्हारे मुख को देख लेगा उसे अवश्य कलंकित होना पड़ेगा।
ऐसा शाप सुनकर चन्द्रमा का मुख मलिन हो गया तथा वे जल में प्रविष्ट हो गये और वहीँ निवास करने लगे। सभी देव,ऋषि और गन्धर्व दुखी और चिंतित होकर ब्रह्मा जी के पास गए उन्हें चन्द्रमा के शाप का वृत्तान्त सुना कर शाप मुक्तहोने का उपाय पूछा तव ब्रह्मा जी कहा ,हे देवताओ गणेश जी के दिए शाप को कोई भी नहीं काट सकता इसलिए आप लोग गणेश जी की ही शरण में जायें।
इस पर देवों ने पूछा कि गणेश को प्रसन्न करने उपाय बताएं तब ब्रह्माजी ने कृष्ण चतुर्थी की रात्रि में गणेशजी का पूजन करने की विधि बताई। देव गुरु बृहस्पति जी ने चन्द्रमा के पास जाकर ब्रह्मा जी द्वारा बताई विधि का वर्णन किया ,उस विधि के अनुसार कृष्ण चतुर्थी का व्रत व पूजन किया और स्तुति की।
जिससे गणेशजी प्रसन्न हुए और चंद्रमा से वर मांगने को कहा। चन्द्रमा ने कहा मेरा दर्शन सभी पूर्ववत करने लगें यही वर दीजिये। गणेशजी बोले- हे1 चन्द्र यह वर तुम्हे नहीं दे सकता कोई दूसरा वरदान दे सकता हूँ। यह सुनकर देवता चिंतित हुए और गणेशजी से प्रार्थना करने लगे कि ,हे देवाधिदेव ! आप चन्द्रमा को शाप मुक्त कर दें ,हम यही वर चाहते है। आप ब्रह्माजी के बड़प्पन का विचार कर चन्द्रमा को शाप मुक्त कर दें।
देवताओं की करुण प्रार्थना सुनकर गणेशजी कहा कि आप लोग मेरे भक्त है। इसलिए मै आप लोगों को अभीष्ट वर प्रदान करता हूँ। गणेशजी ने कहा जो लोग भादो शुक्ल चतुर्थी को चन्द्रमा का दर्शन करेगें उन्हें मिथ्या कलंक तो अवश्य ही लगेगा, लेकिन शुक्ल पक्ष की द्वितीया के दिन जो व्यक्ति हर महीने तुम्हारा दर्शन करते रहेंगे, उन्हें भादों सुदी चौथ के दर्शन का दोष नहीं लगेंगा।
अत: शुक्ल पक्ष की द्वितीया को चन्द्र दर्शन अवश्य करना चाहिए।
भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी की कथा सुनने से भी दोष मुक्त हो जाते है।
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