पढ़ने-पढ़ाने का सिलसिला लगभग खत्म हो गया है। अब हर जरूरत के लिए " गूगल पंडित" मौजूद है। शिक्षाप्रद साहित्य का स्थान मनोरंजक साहित्य ने ले लिया है।युवा ही क्यों ? हम सब भी कहीं न कहीं हल्के-फुल्के मनोरंजन की तलाश में रहने लगे हैं। स्तरीय पत्र-पत्रिकाओं की प्रसार संख्या तेजी से घट रही है। रही-सही कसर हर हाथ में उपलब्ध मोबाइल, कम्प्यूटर से दुनिया मुट्ठी में आ गई है। इस मुट्ठी में क्या "बंद" हो रहा है, यह बताने की किसी को भी जरूरत नहीं है।यही विचार करते हुवे हमने रेडिओ चैनल का प्रसारण शुरू किया है।
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