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सिंह और चतुर खरगोश

सिंह और चतुर खरगोश

Released Thursday, 14th July 2022
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किसी जंगल में भासुरक नाम का एक सिंह रहता था। वह बलवान होने के कारण रोज अनेक हिरण, खरगोश आदि जानवरों को मारकर भी शान्त नहीं होता था। एक दिन उस जंगल के सारे जीव मिलकर उसके पास गए और बोले, “स्वामी! इन सारे जीवों को मारने से क्या लाभ? आपकी तृप्ति तो एक हिरण से ही हो जाती है। इसलिए आप हमारे साथ संधि कर लीजिये। आज से घर बैठे आपके पास क्रम से रोज एक जीव खाने के लिए पहुँच जाया करेगा। ऐसा करने से आपकी जीविका भी बिना कष्ट के चलेगी और हमारा नाश भी नहीं होगा।“

उनकी बात सुनकर भासुरक बोला, “ये तुमने ठीक कहा। परंतु याद रहे अगर किसी दिन मेरे पास खाने के लिए एक जीव नहीं आया तो मैं सबको खा जाऊँगा।“ सभी जानवरों ने “ऐसा ही होगा” कहकर वहाँ से विदा ली और उसके बाद बिना भय के जंगल में रहने लगे। रोज दोपहर को एक जीव सिंह के पास पहुँच जाता था। 

एक दिन सिंह के पास जाने का क्रम खरगोश का था। खरगोश अपनी मृत्यु के डर से धीरे-धीरे चलते हुए किसी तरह सिंह को मारकर अपनी जान बचाने के उपाय सोचने लगा। रास्ते में उसे एक कुआं दिखा। उसने झाँककर देखा तो उसे अपनी परछाई दिखाई दी। इससे खरगोश को सिंह से छुटकारा पाने का एक उपाय सूझा। 

खरगोश धीरे-धीरे चलता हुआ शाम के समय सिंह के पास पहुंचा। भासुरक भूख से व्याकुल हो रहा था और छोटे से खरगोश को देखकर उसका क्रोध और भी बढ़ गया और उसने खरगोश से कहा, “अरे नीच! एक तो इतने छोटे हो और दूसरे इतनी देरी से आये हो। इस अपराध के लिए मैं तुमको खाने के बाद सुबह सभी हिरणों को मारकर इसका दंड दूंगा।“ 

खरगोश ने दबी हुई आवाज में कहा, “स्वामी! इसमें न मेरा अपराध है और न ही बाकी जानवरों का।“

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पंचतंत्र की कहानियां Panchatantra ki Kahaniyan

आज से लगभग २००० साल पहले भारत के दक्षिण में महिलारोप्य नाम का एक नगर था, जहाँ अमरशक्ति नमक राजा राज्य करता था।  अमरशक्ति के तीन पुत्र थे, बहुशक्ति, उग्रशक्ति और अनंतशक्ति। राजा अमरशक्ति नीतिशास्त्र में जितने निपुण थे उनके पुत्र उतने ही बड़े महामूर्ख थे। पढाई-लिखाई में उनका मन बिलकुल भी नहीं लगता था, और इससे राजा अमरशक्ति तो अत्यंत चिंता हो रही थी। एक दिन अपनी इसी चिंता को राजा ने अपने समस्त मंत्रिमंडल के सामने रखा और उनसे परामर्श माँगा। राजा ने अपने मंत्रियों से कहा,"मेरे पुत्र किसी भी प्रकार की पढाई-लिखाई में बिलकुल भी मन नहीं लगाते और इसी कारणवश उनको शास्त्रों का जरा भी ज्ञान नहीं है। इनको ऐसे देखकर मुझे इनके साथ-साथ हमारे राज्य की चिंता लगी रहती है। आप लोग कृपा करके इस समस्या का कुछ समाधान बताएं।"सभा में उपस्थित एक मंत्री ने कहा,"राजा! पहले बारह वर्षों तक व्याकरण पढ़ी जाती है; उसके बाद मनु का धर्मशास्त्र, चाणक्य का अर्थशास्त्र और फिर वात्स्यायन का कामशास्त्र पढ़े जाते है। तब जाकर ज्ञान की प्राप्ति होती है।" मंत्री की बात सुनकर राजा ने कहा,"मानव जीवन बड़ा ही अनिश्चित है और इस प्रकार समस्त शास्त्रों को तो पढ़ने में वर्षों निकल जायेंगे। इस सरे ज्ञान को अर्जित करने का कोई आसान उपाय बताइये।" तभी सभा में उपस्थित सुमति नाम का मंत्री बोला,"यहाँ समस्त शास्त्रों में विद्वान और विद्यार्थियों में प्रिय विष्णुशर्मा नमक एक आचार्य रहता है। आप अपने पुत्रों को उसे सौंप दे। वो अवश्य ही आपके पुत्रों को कम समय में समस्त शास्त्रों में ज्ञानी बना देगा।"सुमति की ऐसी बात सुनकर राजा ने तुरंत ही विष्णुशर्मा को अपनी सभा में बुलाकर कहा,"आचार्य! आप मुझ पर कृपा करें और मेरे इन पुत्रों को जल्दी ही नीतिशास्त्र का ज्ञान प्रदान करें। आपने अगर ऐसा कर दिया तो मैं आपको १०० ग्राम पुरस्कार स्वरुप भेंट करूँगा।" राजा की बात सुनकर विष्णुशर्मा बोले,"राजन! मुझ ब्राह्मण को १०० ग्रामों का क्या लोभ, मुझे आपका पुरस्कार नहीं चाहिए। मैं आपके पुत्रों को अवश्य ही शिक्षा प्रदान करूँगा और अगले ६ महीने में उन्हें नीतिशास्त्र में निपुण कर दूंगा। यदि मैं ऐसा नहीं कर सका तो आप मुझे उचित दंड दे सकते हैं।" विष्णुशर्मा की प्रतिज्ञा सुनकर समस्त मंत्रीगण और राजा बहुत खुश हुए और तीनो राजपुत्रों को उन्हें सौंपकर निश्चिन्त होकर राजकार्य में लग गए।विष्णुशर्मा तीनों राजकुमारों को अपने आश्रम लेकर आये और जीव-जंतुओं की कहानियों में माध्यम से उनको शिक्षा देने लगे। विष्णुशर्मा ने इन कहानियों को पाँच भागों में बांटा जो कुछ इस प्रकार हैं, पहला भाग मित्रभेद अर्थात मित्रों में मनमुटाव या अलगाव, दूसरा भाग मित्रसम्प्राप्ति यानि मित्र प्राप्ति और उसके लाभ, तीसरा भाग काकोलूकीया मतलब कौवे और उल्लुओं की कथाएं, चौथा भाग लब्ध्प्रणाश मतलब जान पे बन आने पर क्या करें और पांचवां भाग अपरीक्षितकारक अर्थात जिसके विषय में जानकारी ना हो तो हड़बड़ी में कदम ना उठायें। इन्ही नैतिक कहानियों के द्वारा विष्णुशर्मा ने तीनों राजकुमारों को ६ महीने में ही नीतिशास्त्र में विद्वान बना दिया। मनोविज्ञान, व्यवहारिकता और राजकाज की सीख देती इन कहानियों के संकलन को पंचतंत्र कहते हैं और इन कहानियों के माध्यम से बच्चों को बड़े ही रोचक तरीके से ज्ञान की बातें सिखाई जा सकती हैं। सूत्रधार की इस कड़ी में हम बच्चों को ध्यान में रखते हुए पंचतंत्र की इन्ही कहानियों को प्रस्तुत करेंगे।https://play.google.com/store/apps/details?id=com.sutradharMillions of listeners seek out Bingepods (Ideabrew Studios Network content) every day. Get in touch with us to advertise, join the network or click listen to  enjoy content by some of India's top audio [email protected] | Apple

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