रवीन्द्रनाथ टैगोर लिखित प्रस्तुत इस कहानी में बात पति पत्नी के बीच अविश्वास की भी है। नारी के आभूषण प्रेम की भी है और अंधविश्वास व अफवाहों की भी। खूबसूरती के साथ रहस्य रोमांचित करने वाली कहानी खोया हुआ मोती सुनिए.....
जीवन में बहुत बार परिस्थियाँ कुछ ऐसी निर्मित हो जाती हैं कि सच्चाई की परतें दब जाती हैं और अपनी बेबस इंसान अपनी बेगुनाही का सबूत देने में समर्थ नहीं हो पाता है ऐसा ही कुछ घटित हुआ है इस प्रस्तुत कहानी में और अंत में जब कहानी का पात्र अपने को बे
एक कुँवारी लड़की की अगर शादी न हो पा रही हो, तो उसके माता पिता को समाज में, खानदान में विचित्र नज़रों से देखा जाना और लड़की की खामियां निकालने की प्रक्रिया आरंभ हो जाना हमेश से होता रहा है। रविन्दनाथ टैगोर की प्रस्तुत कहानी में इन परिस्थितियों के
काबुलीवाला.....रवीन्द्रनाथ टैगोर की लिखी कहानियों में शायद सबसे ज़्यादा लोकप्रिय और जानी पहचानी कहानी है। छोटी कक्षाओं के पाठ्यक्रम में शामिल ये कहानी कोई मिनी के नाम से याद करता है और कोई रहमत काबुलीवाले के नाम से। बचपन की मिनी का रहमत के साथ ब
एक लड़की की बचपन से चाहत, पुलिस की नौकरी करने की थी, क्योंकि उसके पिता एसपी थे। उसकी शिक्षा और ट्रेनिंग भी ....उसी हिसाब से हुई थी जिससे कारण उसके शौक और तौर तरीके भी रोमांच से जुड़े हुए होते थे...क्या उसको पुलिस में नौकरी मिल पायी....बाकी की कहा
बरसों तक काम करने वाले एक वफादार कर्मी पर उंगलियां उठी...फिर वो वापस अपने गाँव चला गया। अपने परिवार के साथ अपने बुढ़ापे के दिन आराम से काटते काटते अचानक कुछ ऐसा हुआ कि उसने एक निर्णय लिया....गलत था या सही? किसके लिए गलत किसके लिए सही? सुनिए कहान
इंसान जिस भी घर परिवार में जन्म लेता है, ये उसकी मर्ज़ी पर निर्भर नहीं होता। किसी की किस्मत में संघर्ष और किसी को चांदी का चम्मच मिलता है। कोई दलित हो या राजा ...इंसान तो वो अपने कर्मों से बनता है। ऐसे ही अर्थों को समवेशित करती हुई ये कहानी लिखी
रवीद्र नाथ टैगोर की एक अनोखी कल्पना है कहानी कवि का हृदय..... भगवान विष्णु ने कमल के पुष्प को एक रमणीय युवती में परिवर्तित कर दिया....लेकिन इस युवती के लिए रहने का स्थान ढूँढते ढूँढते थक गए....क्या भगवान को उसके लिए स्थान मिला? सुनिए ये कहानी..
बहुओं की नज़र माँ के बक्से पर बनी रहती थी जो कभी कभी ही खुलता था। बच्चों की जिज्ञासा भी दादी माँ के ...बक्से के प्रति हमेशा बनी रहती थी...जिसके बारे में पूछने पर भी न बताती थीं दादी...आखिर ऐसा क्या था उस बक्से में..जब खुला ये तो सबकी आँखें भी खु
हमेशा से माँ बाप ने प्यार करना गलत है, यही माना है। ज़माना क्या कहेगा...अपना धर्म जाति ज़्यादा महत्वपूर्ण माना जाता रहा है बेटी की खुशी से। अवगुंठन की कथा अपनी ही बेटी को जान बूझकर कुएं में धकेल कर उसका जीवन समाप्त करने की कथा है। बेटी ने भी अपने
शादी के बाद बेटे पर माँ का हक़ कम हो जाता है....या ख़त्म हो जाता है.....या बेटा भी बेटी की तरह पराया हो जाता है....ये निर्भर करता है घर में आने वाली नयी बहू पर। प्रस्तुत कहानी में माँ को बेटे का अपहरण करने की नौबत क्यों आई....सुनिए माँ-बेटे के सं
हर बच्चे के मन में कभी न कभी ये ज़रूर आता है कि मैं बड़ा हो जाऊँगा फिर ऐसा करूँगा, वैसा करूँगी......इसी तरह हर बड़ा हो चुका इंसान भी अक्सर सोचता है कि जब छोटे थे तभी सही था, काश बचपन वापिस आ जाए.....रवीन्द्र नाथ टैगोर की प्रस्तुत कहानी में इच्छपूर
किसी भी भारतीय लड़की के लिए चुटकी भर सिंदूर का मोल कितना होता है, यह समझा जा सकता है। एक कमसिन उम्र से एक ही व्यक्ति को चाहने के बावजूद परिस्थितियों ने अल्का को उस सिंदूर से दूर रखा। इंतज़ार कितना लंबा था, क्यों हुआ....सुनिए शकुंतला ब्रजमोहन की क
एक मासूम-अल्हड़ सी कुडानी..जिसको न दिल-इश्क़ की जानकारी है और न ही मन व भावनाओं की....एक भाई-बहन के बीच मज़ाक और छेड़खानी के कारण किन परिस्थितियों से गुज़रती चली गयी....गुरुदेव के कलाम से निकली एक मार्मिक कहानी....
विवाह की उम्र होने पर अपने भावी जीवन साथी के लिए मन में कल्पना होना हमेशा से लड़के और लड़की होता रहा है। पर पहले के ज़माने में बिना कन्या को देखे-मिले बुज़ुर्गों के आदेश पर विवाह हुआ करते थे। दान-दहेज के मामले भी बुज़ुर्ग अपने हिसाब से देखते थे। लेक
पुराने समय में जब एक ही माँ बाप से कई भाई बहन हुआ करते थे, तब घर के बड़े बच्चे छोटों को पालने में मदद किया करते थे। प्रस्तुत कहानी में इकलौती तारा के भाई तब पैदा हुआ, जब उसके खुद के बच्चे हो चुके थे। बुज़ुर्ग माता पिता को जल्दी जाना ही था। अपने प