मीरा जाटव के सपनो की कहानी सुनकर उन्हें बुंदेलखंड की नारीवादी नंबर 1 बुलाने का मन करता है | पिछले २० साल में उन्होंने कई ग्रामीण महिलाओ को पत्रकार बनाया है और गांव के मुद्दों को सरकार और समाज के सामने उठाया है | यह सिर्फ दो समाचार संस्थाओ की संपादक ही नहीं पर दोनों की सह-संस्थापक भी रही है | सबसे पहले ख़बर लहरिया नाम की सन्स्था संभाली और अब चित्रकूट कलेक्टिव चला रही है |
मीरा जी ने समाज के दिए हुए हर उस दायरे को लांघा है जो उनको बांधने के लिए बनाया गया था - फिर वह चाहे उनकी दलित जाती की पहचान हो, या पांच बेटियों की माँ होने की ज़िम्मेदारी | उनके पत्रकारिता के करियर में उन्होंने बड़े बड़े डाकुओं का सामना किया, शक्तिशाली व्यवसायी और नेताओ के खिलाफ भी ख़भरे छापी |
इस एपिसोड में उनकी बेटी दीपिका यह जानना चाहती है की एक ग्रामीण महिला होकर उन्होंने पत्रकारिता जैसे पुरुष प्रधान छेत्र में किस तरह अपने काम का और अपने सपनो का परचम लहराया
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