ज़िन्दगी में कई बार ऐसा होता कि हमारे अपने और सपने साथ नहीं चल पाते | कभी समाज का दबाब तो कभी परिवार से अनबन, यह चीज़ें हमारे अंदर की ज़िद्द को डर में बदल देती है | इन्हीं तरह की उलझनों से भरा है हमारे सपनों का सफर | वैसे तो यह दिक्कतें सभी को आती है पर औरतें पर पारिवारिक और सामाजिक उम्मीदों का बोझ ज्यादा होता है | तो क्या इसका मतलब है हमें सपने पाने के लिए रिश्ते छोड़ने पड़ेंगे, या रिश्ते निभाने के लिए सपने? कुछ ऐसे ही सवाल लेकर आयी है हमारी आज की मेहमान ज्योति कुमारी, सुरभि यादव के लिए। ज्योति अपने गांव कत्रासीन (बिहार) की पहली महिला है जिन्होंने स्कूल पूरी कर आगे बढ़ने की सोची | वह अभी साझे सपने में मैनेजमेंट का कोर्स कर रही है | साझे सपने गांव में रहने वाली औरतों को सक्षम बनाकर उनके करियर बनाता है | सुरभि यादव इस संस्था की संस्थापक है |आप भी यह चर्चा सुने और आशा है की आपके मन में उठे कुछ सवालों के भी जवाब आपको मिल पाएंगे |
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