भारत में आज़ादी आई तब गांधी जी बेलियाघाट की तरफ थे, उधर लोग अपने हिंदू और मुसलमान भाइयों को आपस में मार-काट रहे थे । ऐसे वक़्त में गांधी जी तथा मौजूद सभी को ये लगा कि यह आज़ादी तो वह है ही नहीं, जिसकी हमने ख़्वाहिश की थी। फ़ैज़ को भी यही लगा था और उन्होंने अपने महसूस किए हुए शब्दों को क़लम से कुछ यूं बयां किया था ' ये दाग़ दाग़ उजाला' ...
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