हुई शाम उनका ख़याल आ गयावही ज़िंदगी का सवाल आ गयाअभी तक तो होंठों पे थातबस्सुम का एक सिलसिलाबहुत शादमाँ थे हम उनको भूला करअचानक ये क्या हो गयाके चहरे पे रंग-ए-मलाल आ गयाहुई शाम उनका...हमें तो यही था ग़ुरूर:ग़म-ए-यार है हमसे दूरवही ग़म जिसे हमने किस-किस जतन सेनिकाला था इस दिल से दूरवो चलकर क़यामत की चाल आ गयाहुई शाम उनका...--- Send in a voice message: https://anchor.fm/theabbie/messageSupport this podcast:
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