आलेख : सुजॉय चटर्जी
प्रस्तुति : संज्ञा टंडन
नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकार्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के अंक के लिए हमने चुना है साल 2020 की फ़िल्म ’शकीला’ का गीत - "वो लम्हा जिसे जिया ही न था"। विशाल मिश्र की आवाज़, कुमार के बोल, और वीर समर्थ का संगीत। इस फ़िल्म से हिन्दी फ़िल्म जगत में क़दम रखने वाले संगीतकार वीर समर्थ आख़िर कौन हैं? इस गीत के चार दक्षिणी भाषाओं के संस्करण किन गायकों ने गाये? इस गीत की गायन प्रक्रिया में विशाल मिश्र ने क्या तरीका अपनाया? कोविड काल में जारी हुए इस गीत के बहाने विशाल ने संगीत में होते किस महत्वपूर्ण बदलाव की ओर इशारा किया है? जानिये कि मचलते-थिरकते गीतों के गीतकार कुमार ने किस संजीदगी से इस गीत को अंजाम दिया है। ये सब आज के इस अंक में।
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