हुआ आज साँझ यूँ
के कुछ रीता रीता सा लग रहा था
साँझ ढले अक्सर मन संध्या पूजा के बाद कुछ उदास सा हो उठता है
बड़ा ख़ाली ख़ाली सा लगा सच
अनमने कद़म कमरे की अलमारी तक ले गए
यादों का बक्सा खोला
साथ बिताए पलों की पोटली खुली
वो सूर्योदय, वो सूर्यास्त
वो साग़र की लहरें
वो बुलबुले उड़ते हवा में
वो Purse में से घुली घुली सी मोगरे की माद़क गंध
वो jeans के pockets से निकलती साग़र की रेती
दिनों दिन
वो तुम्हारा पहला प्रेम पत्र
वो सूखे गुलाब
पहली बारीश की वो कुछ बूंदे
जो अभी तलक ठहरी थी तुम्हारे अधरों पर
वो आँखों की कशिश
जो आज भी धधकती है मेरी देह पर
वो movie के tickets
वो chocolate का wrapper
वो प्यार का ताबीज़
रीता रीता?
ख़ाली ख़ाली?
हाँ 'शाम से आँख में नमी सी है '
हाँ 'नब्ज़ कुछ देर से थमी सी है'
पर मुझे कोई कमी नहीं तुम्हारी
तुम मेरे पोर पोर में हो
मन यूँ तृप्त हुआ जाता है सच
जबसे तुम्हारे इश्क़ में हूँ
कोई कोना रीता न रहा
©Maya
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