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Sadhak Sanjivani / साधक संजीवनी

Pradeep S Rathi

Sadhak Sanjivani / साधक संजीवनी

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अर्जुन उवाचदृष्ट्वेमं स्वजनं कृष्ण युयुत्सुं समुपस्थितम्।।1.28।।सीदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिशुष्यति।वेपथुश्च शरीरे मे रोमहर्षश्च जायते।।1.29।।गाण्डीवं स्रंसते हस्तात्त्वक्चैव परिदह्यते।न च शक्नोम्यवस्थातुं भ्रमतीव च मे मनः।।1.30।।।।1.28।। व्य
संजय उवाचएवमुक्तो हृषीकेशो गुडाकेशेन भारत।सेनयोरुभयोर्मध्ये स्थापयित्वा रथोत्तमम्।।1.24।।1.24।। व्याख्या--'गुडाकेशेन'--'गुडाकेश' शब्दके दो अर्थ होते हैं (1) 'गुडा' नाम मुड़े हुएका है और 'केश' नाम बालोंका है। जिसके सिरके बाल मुड़े हुए अर्थात् घु
अथ व्यवस्थितान् दृष्ट्वा धार्तराष्ट्रान्कपिध्वजः।प्रवृत्ते शस्त्रसंपाते धनुरुद्यम्य पाण्डवः।।1.20।।हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह महीपते।हे महीपते! धृतराष्ट्र! अब शस्त्रों के चलने की तैयारी हो ही रही थी कि उस समय अन्यायपूर्वक राज्य को धारण करनेवाले र
पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनंजयः।पौण्ड्रं दध्मौ महाशङ्खं भीमकर्मा वृकोदरः।।1.15।।अन्तर्यामी भगवान् श्रीकृष्ण ने पाञ्चजन्य नामक तथा धनञ्जय अर्जुन ने देवदत्त नामक शंख बजाया; और भयानक कर्म करनेवाले वृकोदर भीम ने पौण्ड्र नामक महाशंख बजाया। व्याख
तस्य संजनयन्हर्षं कुरुवृद्धः पितामहः।सिंहनादं विनद्योच्चैः शङ्खं दध्मौ प्रतापवान्।।1.12।।दुर्योधन के हृदय में हर्ष उत्पन्न करते हुए कुरुवृद्ध प्रभावशाली पितामह भीष्म ने सिंह के समान गरज कर जोर से शंख बजाया।व्याख्या--'तस्य संजनयन् हर्षम्'-- यद्य
अन्ये च बहवः शूरा मदर्थे त्यक्तजीविताः।नानाशस्त्रप्रहरणाः सर्वे युद्धविशारदाः।।1.9।।व्याख्या-- 'अन्ये च बहवः शूरा मदर्थे त्यक्त-जीविताः'-- मैंने अभीतक अपनी सेनाके जितने शूरवीरोंके नाम लिये हैं, उनके अतिरिक्त भी हमारी सेनामें बाह्लीक, शल्य, भगदत
अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम।नायका मम सैन्यस्य संज्ञार्थं तान्ब्रवीमि ते।।1.7।।भवान्भीष्मश्च कर्णश्च कृपश्च समितिञ्जयः।अश्वत्थामा विकर्णश्च सौमदत्तिस्तथैव च।।1.8।।
अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि।युयुधानो विराटश्च द्रुपदश्च महारथः।।1.4।।धृष्टकेतुश्चेकितानः काशिराजश्च वीर्यवान्।पुरुजित्कुन्तिभोजश्च शैब्यश्च नरपुङ्गवः।।1.5।।युधामन्युश्च विक्रान्त उत्तमौजाश्च वीर्यवान्।सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महार
सञ्जय उवाचदृष्ट्वा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा।आचार्यमुपसङ्गम्य राजा वचनमब्रवीत् ।। 1.2 ।।पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम्।व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता ।। 1.3 ।।
धृतराष्ट्र उवाचधर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः।मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय ।। 1.1 ।।
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