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तू लिखे या ना लिखेतू लिखे या ना लिखे, मसरूफ़ होना चाहिए।अनकहे से वाक्य को, मशहूर होना चाहिए।बेज़ुबानी बात के हर, मेज़बानी अक्षरों कोकाले गहरे पन्नों पर, महफूज़ होना चाहिए।।***
क्यों हूँओढ़कर छांव रहबर का भी, आहिस्ता क्यों हूँ?अबस मैं अजनबी इस दौड़ का, हिस्सा क्यों हूँ?तबस्सुम सी नज़र से, नज़्में अक्सर मुझसे पूछे है,हरएक अन्जाम में मैं, हार का किस्सा क्यों हूँ?***
काफी हैमहफ़िल तेरी, शिरक़त मेरी, बेशक़ बड़ी ज़हमत।तेरे ही नाम में चर्चा मेरा, गुमनाम काफी है।।मेरी हैं गर्द सी गुस्ताखियां, और ग़ैरती से ग़म।मगर हों दिल में तेरी धड़कनें, एहसास काफी है।।***
ज़हे-नसीबख़ुदा शौक़ीन है "ज़ेहन" की ज़हे-नसीब नज़्मों का।मौसम शांत हो अक्सर कर वो बूंदे गिराया है।। अपनी खामोशियों को यूं जो पन्नो पर उतारा है।बनेंगे अश्क़ के कारण या कुर्बत भी गवारा है।बख़ूबी जानता हर इक अदद कमज़ोरियाँ मेरी।आँखे बंद थी, सोया था, सपनों
बाकी हैबेपरवाहियाँ मेरी, उसी परवरिश का हिस्सा हैं,जहाँ मुलाकात में बिछड़ने का, रिवाज़ बाकी है।ये बूंदे हैं बस जो, कहकाशीं रातों में गिर आयीं,अभी मिलना मेरा, घुलना तेरा, बरसात बाकी है।।
मुबारक़समूचे भूधरा को, घरघटा नें घेर रखा है,महज़ सपना तेरा सपना, तुझे सपना मुबारक़।तेरी आंखें जो चाहे, जलते नभ का अंश भी देखे,महज़ चंदा दिखा शीतल, तुझे चंदा मुबारक़।।***
हकीक़तगर्दिश में कुछ, गुमनाम सी, गुस्ताख़ हकीक़त,अनकहे, अल्फ़ाज़ के, अस्बाब हकीक़त।ज़मी पे तू, है आसमां तेरे आईने में,ज़फ़र मिलती नहीं फ़रियाद से, बे-दाद हकीक़त।।***
"ज़ेहन" बस…।नज़र से दूर इतनाख़ुद को मख़मल में लपेटे हो।"ज़ेहन" बस याद आयी है तेरीरोया नहीं हूँ मैं।। मैं रखता हूँ कदम कुछबेतुकी सी बेरुख़ी के बीच।है रस्ते की समझ कच्ची थोड़ीखोया नहीं हूँ मैं।। मुझे अब नींद आती हैतेरी शैतानियों के संग।है मेरी धड़कनें कु
Dear listeners. We are grateful for your overwhelming love. S we have decided to come up with season two. So please stay tuned.
क्या लिखूँमैं लिखूँ कुछ अनकहाया वो लिखूँ, जो कहा नही?तू वो रंग है, जो रंगा नहीकुछ श्वेत है, पर हवा नही।तू कुछ अजनबी, कुछ महज़बींइक अनछुआ एहसास है।या ये कहूँ, तू कुछ नहींकुछ तुझमे है, जो ख़ास है।
तुम ही होउनकी रात जो मख़मल सी सिलवट पर गुज़रती है।मेरी तो छत भी तुम, बहती हवा, तुम ही सितारा हो।"ज़ेहन" तुम ही हो उगता चाँद, हर इक नज़ारा हो।। लो माना डूब जाते है वो अक्सर एक दूजे में।तुम्हारी आंख उर्दू, मेरी नज़्मों का सहारा हो।"ज़ेहन" तुम ही हो ढलत
आंखों से पढ़ ली जाए, ऐसी बात होती।जुगनू भी न सुन पाए, वो आवाज़ होती।ना होता दूसरा, तेरे मेरे खामोशियों के बीचना झूठा मुस्कुरा पाते, "ज़ेहन" गर पास होती। किसी तकिये पे ना ही, आँसुवों कि छाप होती।अभी बस चाँद है, तब रोशनी भी साथ होती।बाहें बन जाती पर
कमी सी हैमेरी बातों में कुछ, अल्फ़ाज़ की कमी सी है,तेरी आंखों में कुछ, एहसास की कमी सी है।ऐ मेरी रूह, मेरे अख़्स को आज़ाद रहने दे,तेरे दिल में भी कुछ, जज़्बात की कमी सी है।। मेरी लोरी में तेरे रात की, कमी सी है,जलती शाख़ में, कुछ राख़ की, कमी सी है।
सच्चा क्या हैमेरी सोच तेरी सच्चाई में अच्छा क्या है?"ज़ेहन" मेरे प्यार तेरी दोस्ती में सच्चा क्या है? जो होना है यहाँ उसने तो पहले से ही लिख़ डाला, फिरमेरी इबादत तेरी प्रार्थना में अब रखा क्या है?"ज़ेहन" मेरे प्यार तेरी दोस्ती में सच्चा क्या है? म
कैसे नींद आएगीवो कहते कर्म करते जा ज़िन्दगी चल कर आएगी।"ज़ेहन" अब तू बता दे आज़ कैसे नींद आएगी?कभी मेरे हाथ थामे कोई सीने से लगा लेता।कहे, मुहब्बत नही फिर क्यों है उसका चाँद सा सजदा।मगर मालूम है मुझको तू इक दिन दूर जाएगी।"ज़ेहन" अब तू बता दे आज़ कैस
"ज़ेहन" मधुशाला"ज़ेहन" मधुशाला उनका प्यार हाला सा, ख़ुद प्याला बन गयी ।आज पीने वाला साकी, "ज़ेहन" मधुशाला बन गयी ।।‎लिखा है नाम उनका इस शहर की, हर दीवारों पे।नहीं साकी मिला अबतक जो भर दे, प्याला हाले से।।कोई ग़म में, कोई शौक़ में, प्याले को पकड़
Accha Nahi Lagta (अच्छा नही लगता)उनका प्यार मेरी ज़िंदगी, हैं इस बात से वाकिफ;जो कर देता कभी इज़हार,उन्हें अच्छा नही लगता।पकड़कर हाथ हमने साथ, लांघी है कई सरहद;मगर मांगू कभी वो हाथ, उन्हें अच्छा नही लगता।वो करते हैं दुआ,मेरे सपने साकार होने की;ह
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