बस यूँ ही इक रात तुम मेरे सपनों मे टहले आंयी थी।मेरे बेहरनगी सीने में माथा रख़ तुम धड़कन गिन रही थी ,मै तुम्हारी ज़ुल्फ़ों में फसी उलझनों को सुलझा रहा था ,और तुम मुसलसल, अपनी पलकें मीच रही थी।
उसने नज़र नज़र में ही ऐसे भले सुखन कहे, मैने तो उसके पांव में सारा क़लाम रख दिया। 'अहमद फ़राज़' , इश्क और मोहब्बत बयां करने का जिनका एक अलग ही अंदाज रहा। उनकी कुछ नज्में और गज़लें।
वो रात बतियाती ,दिन सुलाते , उस कोने वाले पलंग पर ,जहा पर एक ख्वाबी तुम अक़्सर साथ लेटी रहती। और कुछ ख़्याल है जो आज छन कर आये है।कुछ मलाल है, जो कही टहलके दूर जाता ही नहीं।
'दिल नाउमीद तो नही नाकाम ही तो है, लंबी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है।' - फैज़ अहमद फैज़ साहब। अपने दौर के सबसे पसंदीदा तारक्कीपसंद शायर। इंसानिया के लिए लड़ना जिनकी फितरत थी। यह मुकाम, उस हौसले के नाम।
Even when it continues, in midst of Chaos,on another lazy afternoon,Will wait for that one last call!Ill Smile for I met you!And watch you leave, Again!
' मैं मर जाऊ तोह मेरी अलग एक पहचा लिख देना, मेरे लहू से मेरी पेशानी पे हिंदुस्तान लिख देना' - यह थे, ड्र राहत इंदौरी। मुशायरों में इनको जो मुकाम हासिल है वह हैरत ज़दा है। कुछ ऐसे शेर जो रूह तक को झंझोड के रख दे। पहला मुकाम ऐसे अफसाने के नाम।
Aapke saamne lekar aa rahu hu, kuch mutmaeen kar de wale shayaro ki Ruhani Nazmen! Sath hi sath mere violin ki kuch khaarish si dhune! Unke zindagi se jude kuch dilchasp kisse or unke Faham se bhi rubaroo honge. Jude Rahiye ga!